खिरकिया। नगर में विराजित जैन श्वेताम्बर संत संदीपमुनि मसा ने प्रवचन में कहा कि यदि मोक्ष पुरूषार्थ नही होता तो शेष तीन पुरूषार्थ उत्थान नही कर सकता। धर्म, अर्थ व काम पुरूषार्थ उत्थान का कारण नही हो सकता। जब तक मोक्ष लक्ष्य न हो, वैराग्य न हो तब तक शांति मिलने वाली नही है। देव भी हमारी तभी मदद करता है, जब हमारी पुण्य उदय होता है। गौतम स्वामी कई लब्धियों के स्वामी थे, पर वे लब्धियों का प्रयोग नही करते थे। वे उन्हे छिपाकर रखते थे। सिर्फ मोक्ष पुरूषार्थ करते है। साधु भी श्रम करते है, आत्म प्रक्षालन के लिए। साधु को देखकर कोई कौतुहल करे, कोई निंदा करने वाले, कोई शंका करना है, तो को अहोभाव व्यक्त करता है। जिसकी जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि बन जाती है। अतिशय मुनि मसा ने कहा कि जब तक गुणो का आकर्षण नही होगा तब तक उत्थान नही होगा। भवभ्रमण का अंत नही होगा। जब तक आत्मिक गुणो में स्थित नही होंगे। यदि छदमस्त ने अपनी तुलना अरिहंत भगवान से करी तो वह दुर्लभ बोधी को प्राप्त होता है। संसार का मार्ग छोड़ने योग्य है। जिनका संयम के प्रति रूचि हो सरलता से जिन मार्ग पर चढ़ने का भाव हो वह सुलभ बोधी होता है। जवान व्यक्ति रूप देखता है, वृद्ध व्यक्ति गुण देखता है, जो कि उसको अनुभव होता है। आराधना करते समय यदि विशेषता उत्पन्न हो जाऐ तो उसे गौण करते हुए अपनी आराधना में लगे रहना चाहिए।
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