यौन प्रताड़ना पर इंदौर हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,मेदांता हॉस्पिटल शिकायतकर्ता महिला को 25 लाख रुपये मुआवजा अदा करें,
मेदांता हॉस्पिटल पर भी 50 हजार का जुर्माना
इंदौर। कार्यस्थल पर सेक्सुअल हरासमेंट (यौन प्रताड़ना) मामले में इंदौर हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। कोर्ट ने डॉ नरेश त्रेहान के ग्लोबल हेल्थ प्रा लि द्वारा संचालित मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल को आदेश दिया है कि वह शिकायतकर्ता महिला को हुई मानसिक व रेपुटेशन की क्षति के रूप में 25 लाख रुपये मुआवजा 8 सप्ताह में अदा करें अन्यथा 9 प्रतिशत की दर से ब्याज देय होगा। इसके अलावा अस्पताल पर 50,000 जुर्माना भी किया गया है जो 4 सप्ताह में देना होगा।
जस्टिस रोहित आर्या की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया है। फैसले में अस्पताल प्रबंधन को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे ना केवल शिकायतकर्ता महिला के पीएफ व अन्य सभी बकाया अदा करें बल्कि उन्हें अच्छे कार्य अनुभव के साथ करैक्टर सर्टिफिकेट भी जारी करें। इस मामले में शिकायतकर्ता की ओर से एडवोकेट राहुल सेठी व जिला स्तरीय कमेटी की ओर से एडवोकेट विवेक पटवा ने पैरवी की।
यह था मामला
मामला इस प्रकार है कि मेदांता हॉस्पिटल इंदौर में कार्यरत एक महिला मार्केटिंग मैनेजर के साथ अस्पताल में प्रबंधन के व्यक्ति द्वारा सेक्सुअल हरासमेंट किए जाने की शिकायत की गई थी, लेकिन वहां उस पर सुनवाई होने की बजाय उन्हें नौकरी से ही निकाल दिया गया। इस पर महिला ने सेक्सुअल हरासमेंट एक्ट एट वर्क प्लेस 2013 के तहत महिला आयोग को शिकायत की।
आयोग की इंदौर कीजिला स्तरीय शिकायत कमेटी ने मामले की जांच कर 18 अगस्त 2017 को अपनी रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के आधार पर यह माना गया कि उक्त महिला के साथ सेक्सुअल हरासमेंट हुआ है।
इसके चलते 20 सितंबर 2017 को अस्पताल पर ₹50000 जुर्माना किया गया। जिला कमेटी के इस आदेश के विरुद्ध डॉक्टर त्रेहान व अन्य द्वारा दो याचिकाएं इंदौर हाई कोर्ट में दायर की गई।
कोर्ट ने शिकायत कर्ता महिला व जिला स्तरीय कमेटी के वकीलों की ओर से पेश तर्क के आधार पर अपने आदेश में माना कि उक्त महिला के साथ न केवल सेक्सुअल हरासमेंट हुआ बल्कि इस वजह से उन्हें मानसिक व सामाजिक प्रताड़ना के अलावा नौकरी का नुकसान भी सहना पड़ा।
कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई की हॉस्पिटल द्वारा शासन के निर्देश के बावजूद जिला स्तर पर सेक्सुअल हरासमेंट एट वर्क प्लेस को लेकर अपने यहाँ कमेटी का गठन नहीं किया। इन सब तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने शिकायतकर्ता महिला को 25 लाख रुपए मुआवजे के रूप में दिलाए जाने के साथ ही अस्पताल पर ₹50000 जुर्माना भी लगाया।
संभवतः सेक्सुअल हरासमेंट एक्ट एट वर्कप्लेस 2013 के प्रभावशील होने के बाद इस एक्ट में किसी पीड़ित महिला के पक्ष में यह पहला फैसला आया है।
क्या है एक्ट
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा सरकारी दफ्तरों और निजी कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने तथा कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से महिला यौन उत्पीड़न (निरोधक) विधेयक लाया गया था जिसे संसद ने 27 फरवरी 2013 को इसे मंजूरी दी थी। इस विधेयक के अंतर्गत संगठित तथा असंगठित दोनों क्षेत्रों को शामिल किया गया है तथा इसके अंतर्गत घरेलू श्रमिकों को भी शामिल किया गया है।
इस विधेयक का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं को, चाहे वे संगठित क्षेत्र की हों या अंसठित क्षेत्र की, कामकाज का स्वतंत्र माहौल उपलब्ध कराना है। यह विधेयक सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए है।