उज्जैन- न्यायालय विशेेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) डॉ0 (श्रीमती) आरती शुक्ला पाण्डेय, षष्ठम अपर सत्र न्यायाधीश महोदय उज्जैन, के न्यायालय द्वारा आरोपी कमल निवासी उज्जैन धारा 376(2)(एफ)(एन), 376(एबी) भादवि में एवं सहपठित धारा 5/6 पाॅक्सों एक्ट में आरोपी को शेष प्राकृतिक जीवनकाल के कारावास एवं 2,500/- रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया।
उप-संचालक (अभियोजन) डाॅ0 साकेत व्यास ने अभियोजन की घटना अनुसार बताया कि घटना इस प्रकार है, कि पीड़िता द्वारा थाना चिमनगंजमण्डी पर दिनांक 06.04.2019 को प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध कराई कि, वह कक्षा 5 वीं में पड़ती है और उसकी उम्र 11 वर्ष है। मेरे पिता एक ड्रायवर है जो 10 से 12 दिनों के लिये बाहर भी जाते है। आज से करीब 01 वर्ष पूर्व वह कमरे में बैठी थी उसके पिता आये और कमरे का दरवाजा लगा दिया और उसके साथ दुष्कर्म किया। मेरे पिता ने पिछले 05-06 महिने में कई बार उक्त गंदी हरकत मेरे साथ की है। मेरे पिता ने मुझे धमकी दी थी कि यह बात किसी को बताई तो जान से खत्म कर दूॅगा। मैनें डर के कारण अपनी माॅ को नही बताया था, किन्तु मुझे तकलीफ होने के कारण अपनी माॅ को घटना के बारे में बताया है। मेरी माता ने उक्त बात को आॅगनवाडी वाली मेडम को बताई थी, आॅगनवाडी वाली मेडम चाइल्ड लाइन वाली मेडम को लेकर आई थी और उन्हें सारी बातें बताई थी। पीड़िता की रिपोर्ट पर थाना चिमनगंजमण्डी पर प्रथम सूचना रिपोर्ट लेखबद्ध की गई थी। पीड़िता का मेडिकल कराया गया था तथा पीड़िता के साथ दुष्कर्म के संबंध में डीएनए की जांच कराई गई थी जो जांच रिपोर्ट पाॅजीटिव पाई गई थी। आवश्यक अनुसंधान पश्चात् अभियोग पत्र माननीय न्यायालय मे प्रस्तुत किया गया था।
प्रकरण में बालिका के साथ दुष्कर्म का होने से उप-संचालक डाॅ0 व्यास ने पैरवीकर्ता को समय-समय पर विधिक मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
दण्ड के प्रश्नः- आरोपी के अधिवक्ता द्वारा निवेदन किया गया है कि आरोपी की उम्र और प्रथम अपराध को देखते हुऐ उसके पूर्व सहानुभूति पूर्वक विचार किया जाये।
अभियोजन अधिकारी श्री बछेरिया द्वारा न्यायालय ने निवेदन किया गया है, कि आरोपी पीड़िता का पिता है जिस पर पीड़िता की सुरक्षा एवं देखभाल का दायित्व है और उसके द्वारा ही दुष्कर्म का गंभीर अपराध कारित किया गया है ऐसे आरोपी के प्रति समाज सहानुभूति नही रखता है। यह प्रकरण विरलतम से विरलतम की श्रेणी में आता है आरोपी को मृत्युदण्ड से दण्डित किये जाने का निवेदन किया गया।
न्यायालय की टिप्पणीः- मनुष्य ने जब समाज के अस्तित्व व महत्व को मान्यता दी तब उसके कर्तव्यों व अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दण्ड व्यवस्था करने की। आवश्यकता उत्पन्न हुई, यही कारण है कि विभिन्न युगों में विभिन्न स्मृतियों की रचना हुई, जिनमें मनुस्मृति को विशेष महत्व प्राप्त है, मनुस्मृति में 12 अध्याय तथा 2500 श्लोक है। प्रस्तुत प्रकरण के संदर्भ में मनुस्मृति के श्लोक के उद्धरण संदर्भनीय है।
’’पिताचार्यः सुह्न्माताभार्यापुत्रः पुरोहितः।
नादण्डयोनामरोज्ञास्ति यः स्वधर्में न तिष्ठति’’
अर्थात जो भी अपराध करे वह अवश्य दण्डनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरू, पत्नि, मित्र या पुरोहित ही क्यों ना हो।
प्रकरण में शासन की ओर से पैरवी श्री सूरज बछेरिया, विशेष लोक अभियोजक उज्जैन के द्वारा की गई।