सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

संयोग मिला है तो एक न एक दिन वियोग अवश्य होगा: संदीपमुनि मसा


खिरकिया। नगर में विराजित जैन श्वेताम्बर संत संदीपमुनि मसा ने प्रवचन में कहा कि जीव जहां भी जाता है। सचेतन अचेतन पदार्थो का संयोग होता है। और उनके सथ जीव ममत्व बांध लेता है। संयोग व वियोग दोनो मिलते है। संयोग मिला है तो एक न एक दिन वियोग अवश्य होगा। देव बने वहां भी ये देवी मेरी, यह रत्न मिले, ये ऋद्धि मेरी ऐसी ममत्व वहां भी झगड़े उत्पन्न हो जाते है। बाद में उन सभी छोड़कर ही जाना है, तो भी ये ममत्व कर्मो की की स्थिति है। यहां पर रही जमीन पैसा, धन, मकान को लेकर आपसी झगड़े चलते है। अंत में यह सभी छोड़कर जाना ही है। फिर यह झगड़े किस लिए। इन ममत्व के पीछे राग द्वेष बढ़ते है। कर्म बढ़ते है। जाना सभी जीवो को साथ में सिर्फ पुण्य व पाप कर्म जाते है। उसी आधार पर अगला भव मिलता है। अतिशयमुनि मसा ने कहा कि प्रभु वीर ने जब दीक्षा ग्रहण की थी तब शरीर पर सुगंधित लेप लगे थे। जिसके कारण भंवरे आकर उन्हे डंक मारने लगे, लेकिन उन्होने लेप को हटाने का नही सोचा। अनार्य क्षैत्र में कुत्ते आदि ने उन्हे नोचा पर घाव का भी उपचार किया, लेकिन ऐसा नही सोचा सारे परिषह सम्भाव से सहन किया। क्योकि जैन धर्म शुद्धि प्रधान है, जो साधुओं के मलिन वस्त्र या उनके शरीर पर मेल देख कर घृणा करते है, वे जुगुप्सा मोहनीय कर्म का बंध करता है। वास्तव में साधु के उपर लगा मेल तो उनका श्रृंगार होता है। शरीर की शुद्धि को प्रधानता देेने वाला धर्म कभी भी श्रेष्ठ नही हो सकता, क्याकि शरीर का स्वभाव ही सड़न गलन और विध्वंश है। वह नष्ट होने ही वाला हैै। इन बाह्य नष्ट पदार्थ की शुद्धि में धर्म तीन कालमें नही होगा।

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