खिरकिया। जैन श्वेताम्बर आचार्य उमेशमुनि मसा के सुशिष्य संदीपमुनि मसा आदि ठाणा 3 नगर में विराज रहे है। प्रवचन कार्यक्रम के दौरान अतिशय मुनि मसा ने कहा कि तीर्थंकर भगवान का उपदेश भवी जीवों के लिए आनंद मंगल है। जितने भी बाह्य पदार्थ है, वे छोड़ने योग्य है, लेकिन हमारा आकर्षण बाह्य वस्तुओ पर अधिक होता है। जितना जितना मोहनीय कर्म का क्षयोपक्षम होता है, उतन धर्म पर श्रृद्धा होती है। संसार की बाते तो हम सरलता से समझ जाते है, पर धर्म की बातो को जो सरलता से नही समझता वह दुर्लभ बोधी जीव होता है। जिन्होने तप संयम के माध्यम से देव गति प्राप्त की उन देवो की निंदा अवर्णवाद करने से जीव दुर्लभ बोधी होता है। इन सभी का गुण कीर्तन करने से जीव सुलभ बोधी होता है। इस बार जीव को समझाने वाले होते है, पर समझने वाला समझता नही है। उन्होने कहा कि पाप छोड़ने की संसार छोड़ने की हमे कोशिश करना है। हमे समझना है कि किस प्रकार विनय पूर्वक निंदा करने का अवर्णवाद करने का मूल कारण ईष्र्या है। जीव जितना धर्म की बातो को ग्रहण करता है, वह उतना सुलभबोधी होता है। संदीपमुनि मसा ने कहा कि साधु साध्वी का योग मिलना दुर्लभ होता है। कही कही तो पूरा जीवन बीत जाता है पर साधु साध्वी का योग नही मिलता है। श्रमण अर्थात मोक्ष के लिए श्रम करने वाला। हमे श्रमण श्रम करना है।
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