शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

पाप के उदय में दुख और पुण्य के उदय में सुख आता है: अतिशयमुनि मसा


खिरकिया। नगर में विराजित जैन श्वेताम्बर संत संदीपमुनि मसा ने प्रवचन में कहा कि जैन धर्म में नौ तत्व बताए गए है। इसमें मुख्य तत्व केन्द्र बिंदु तत्व जीव है। जीव के पीछे आठ तत्व है। इसमें मुख्य तत्व जीव है। मोक्ष की ईच्छा भी तभी होती है, जब जीव इन नव तत्व को समझे। आश्रत संपर पुष्प पाप आदि का जाने, छः स्थानो का जाने तभी मोक्ष जाने की ईच्छा होती है। देवलोक में सुख बहुत है। वहां का एक एक नाटक 2000 वर्ष का होता है। ऐसे देव जो सुखो में है, उन्हे भी मनुष्य भव की चाहना है। व्यक्ति भ्रूण हत्या करते हुए सोचता है कि 2-3 महीने का जीव नही बनता, शरीर मात्र है, अतः भ्रूण हत्या में कोई दोष नही है, जबकि यह गलत बात है। जीव तो पहले समय में ही पड़ जाता है। भू्रण हत्या करना निर्दयता का सूचक है। आत्मा है तो भले ही हमें दिखाई न दे पर उनका अस्तित्व है, जैसे मोबाईल तरंगो को किसी ने देखा नही पर मानते है, क्योकि हमें उसका उपयोग कर रहे है। अतिशयमुनि म.सा. ने बताया कि संसार की दृष्टि से भौतिक स्थिति में सुख लगता है, पर ज्ञानी को संयम में ही सुख लगता है। संसार में भौतिक पदार्थो में दुःख मानते है, जब वीर प्रभु ने दीक्षा ली उसके बाद उनके उपर बहुत उपसर्ग व दुख आये साढे़ 21 वर्ष तक ऐसे परिगृह आते रहे पर यह दुख उन्हे धर्म से नही आए तो पूर्व कर्मो का उदय था, लेकिन संसारी मानते है कि धर्म किया और दुख हा गया पर ये सोच गलत है, जितनी भी बाह्य स्थिति का निर्माण होता है तो वह कर्म के अधीन है। पाप के उदय में दुख और पुण्य के उदय में सुख आता है।

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