रविवार, 31 जनवरी 2021

साधु महात्माओं के प्रति कभी निरादर का भाव नहीं रखना चाहिए यही समाज को सही दिशा देते है


खिरकिया। श्री सीताराम सेवा समिति द्वारा आयोजित अपने नांेवे वर्ष की भागवत कथा कथा व्यास वृंदावन के महंत श्रीनिवास दास महाराज ने प्रारंभ में मंगलाचरण एवं भगवत बंदना के पश्चात कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मनुष्य को जब तक पूर्ण वैराग्य नहीं होगा तब तक वह ज्ञान धारण नहीं कर सकेगा।


प्रत्येक मनुष्य को वर्ष में कम से कम एक महा तीर्थ में रहकर भगवान के दर्शन करना चाहिए। अगर ऐसा एक साथ संभव ना हो तो टुकड़े टुकड़े में भी किया जा सकता हैं। तीर्थ में जाकर परमात्मा के दर्शन करने से भगवान प्रसन्न होते है, अगर भक्त सच्ची श्रद्धा और विश्वास से अपना सर्वस्व भगवान को श्री चरणों में समर्पित कर देता है, तब भगवान अपने भक्तों की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते है। आपने महात्माओं के लिए बताते हुए कहा कि इनको जब कोई कष्ट देता है, या इनको कष्ट होता है तो सब परमात्मा की आंख में भी आंसू आ जाते है। भारतीय सनातन संस्कृति में इसीलिए महात्माओं को स्वयं भगवान का दर्जा दिया है। इसीलिए साधु महात्माओं के प्रति कभी निरादर का भाव नहीं रखना चाहिए यही समाज को सही दिशा देते है। इस दौरान बड़ी संख्या में महिला पुरूष श्रृद्धालुओं ने पहुंचकर कथा का श्रवण लाभ लिया। महंत जी ने कहा कि जब तक मनुष्य के शरीर में पुरुषार्थ की क्षमता रहती है, तब तक वह तरह-तरह के अभिमान करता रहता है, पर  यह सांसारिक सारी पद प्रतिष्ठा समय के साथ भूतपूर्व हो जाते है, इसलिए मनुष्य में यह मिथ्या कार्यों में अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमारे शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य प्रातः उठते से ही परमात्मा का ध्यान करना चाहिए हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। जब 60 वर्ष की उम्र में भजन करेंगे तो मन नहीं लगेगा इसलिए छोटी उम्र से ही भगवान का भजन करते हुए मन को परमात्मा में लगाना चाहिए उसी से आपका जीवन सरल और सार्थक होगा।

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